Sunday, December 6, 2009

विप्रसेतु" पत्रिका नहीं प्रकल्प है


" विप्रसेतु" प्रकल्प है
स्वर्णिम अध्याय की रचना का
धर्म और ब्रह्म के समादर से जीवन की सार्थकता , वैयक्तिक कल्याण और सुसंगठित समाज सरंचना के लिए सामूहिक सार्थक प्रयास से स्वर्णिम अध्याय की रचना का
धर्म रक्षनार्थ:
"ब्राह्मणस्य ही रक्षनेंन रक्षित: स्याद वेदिको धर्म:" !
आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी का यह मत की ब्राह्मण की रक्षा से ही वैदिक धर्म-शाश्वत सनातन धर्म सुरक्षित रह सकता है क्योंकि वर्नाश्रमों का भेद उसी के अधीन है
सनातन संस्कृति
"आ ब्रह्मन ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चस्वी जायताम "
वैदिक राष्ट्र गीत में सर्वप्रथम भगवन से प्रार्थना की गई हे की हमारे राष्ट्र के ब्राह्मण विद्वान हों और ब्रह्मतेज से भरे हों - ऐसे प्रखर पांडित्य और तेजस्वी ब्राह्मण सदा राष्ट्र को मिले
शिक्षा-प्रसार
"ब्राह्मणत्व सार्वभौम शाश्वत बुद्धि वैभव है"
महान सांस्कृतिक नाट्य कृति चन्द्रगुप्त के रचियता महाकवि प्रसाद का यह मत की "ब्राह्मणत्व सार्वभौम शाश्वत बुद्धि वैभव है"
स्वयं शिक्षित होने और समग्र समाज को शिक्षित करने का दायित्वबोध कराता है , क्योंकि शिक्षित और प्रबुद्ध वर्ग की ही जिम्मेदारी है कि समाज में कोई भी व्यक्ति शिक्षा से वंचित ना रहे
संस्कार निर्माण
समग्र समाज संस्कारवान हो इस पवित्र उद्देश्य से हमारी संस्कार क्षमता को सतेज एवं सक्रिय करना
चिंतन , चरित्र , व्यवहार एवं स्वभाव
निर्माण
चिंतन , चरित्र , उत्कृष्ट व्यवहार तथा उदार एवं संवेदनशील स्वभाव का निर्माण
राष्ट्र रक्षनार्थ
महाकवि प्रसाद - जब तक ब्राह्मण है तभी तक भारत "भारत" है
विश्वमंगल कि आकांक्षा

सर्वे भवन्तु सुखिन:
सर्वे सन्तु निरामया : !
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
माँ कश्चिद् दुःख भाग्भवेत !!

No comments: