Friday, December 4, 2009

भवाब्धिलंघने अधीरा अशक्ता विश्वभेषजं ! विप्रसेतु समाश्रित्य तरन्तु तर्नोत्सुका:!!


(सांसारिक उलझनों से पार पाने में असमर्थ तथा अधीर महानुभाव"विप्रसेतु "का
आश्रय
लेकर बाधाओं से पार जा सकते हैं !)

"विप्रसेतु "
सेतु है :
प्रत्येक सामाजिक इकाई को " स्व " की सीमित भावना से निकालकर सामाजिक सदभावना, सच्चरित्रता एवं एकजुटता के भाव से "वृहत्तर विप्र समाज " की रचना करने का !
सेतु है :
समग्र ब्राह्मण समाज के समेकित विकास और एकीकृत नव-निर्माण
की दिशा में परिलक्षित रिक्तता को दूर करने का !
सेतु है :
सांगठनिक - सांस्कृतिक सुषुप्तावस्था को झकझोड़कर नव-चेतना प्रसार के लिए
सतत
- सार्थक संवाद का !
सेतु है :
समग्र समाज की संस्कार क्षमता को सतेज एवं सक्रिय कर
संस्कारवान समाज निर्माण का !
सेतु है :
धर्म और ब्रह्म के समादर से जीवन की सार्थकता का
सेतु है :
वैयक्तिक कल्याण और सुसंगठित समाज सरंचना के लिए
सामूहिक सार्थक प्रयास का !
सेतु है :
समाज के सञ्चालन-पालन में उपचारात्मक - सुधारात्मक एवं सकारात्मक सहकार - सहयोग प्रदानकरने का !
सेतु है :
शिक्षित- संस्कारित- स्वस्थ- समर्थ- समरस समाज के निर्माण का

No comments: